महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय
महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय न केवल छत्तीसगढ़ राज्य का अपितु पुराने मध्यप्रदेश का भी सर्वाधिक प्राचीन संग्रहालय है। इसके संबंध में नवीन जानकारी यह है कि डॉ. आर.एन.मिश्र द्वारा इस संग्रहालय को दिये गये रायपुर नगर के नक्शे की फोटो कापी में प्राचीन संग्रहालय भवन (Old Museum Building) दर्शाया गया है जो सन् 1867 का बना है। छत्तीसगढ़ एवं महाकौशल अंचल की पुरातात्विक धरोहर को सुरक्षित बनाने, उनका संग्रह कर आगामी पीढ़ियों के ज्ञानवर्द्धन एवं मार्गदर्शन हेतु सांस्कृतिक चेतना से प्रभावित होकर राजनांदगांव रियासत के तत्कालीन शासक महंत घासीदास द्वारा ब्रिटिश काल में एक अष्टकोणीय संग्रहालय भवन का निर्माण करवाया गया जो ब्रिटिश वास्तुकला के अनुरूप है। वर्तमान में इस भवन में ''महाकोशल कलावीथिका'' स्थापित है तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का संचालन होता है।
इस संग्रहालय में वर्तमान में कुल 17279 पुरावशेष एवं कलात्मक सामग्रियां हैं जिनमें 4324 सामग्रियां गैरपुरावशेष हैं तथा शेष 12955 पुरावशेष हैं।
भू-तल :-
इस उत्तराभिमुख संग्रहालय भवन के भू-तल में 4 दीर्घायें हैं -
1. कलाकौद्गाल/प्रतिकृति दीर्घा (Entrance Gallery)
2. पुरातत्व/सिरपुर दीर्घा (Archaeological Gallery)
3. कल्चुरी प्रतिमा दीर्घा (Sculptural Gallery)
4. अभिलेख दीर्घा (Inscription Gallery)
प्रथम तल :-
इस दीर्घा में विविध प्रकार के पशु, पक्षी, सर्प, संग्रहीत चुने हुए अस्त्र-शस्त्र यथा- तीर-कमान, धनुष-बाण, फरसे, कुल्हाड़ियॉं, बरछे आदि प्रदर्शित किये गये हैं।इसमें मात्र दो दीर्घा हैं -
5. प्रकृति इतिहास दीर्घा (Natural History Gallery)
6. अस्त्र-शस्त्र एवं मुद्रा शास्त्रीय दीर्घा
द्वितीय तल-
द्वितीय तल में पेंटिंग दीर्घा एवं जनजातीय (मानव शास्त्रीय) दीर्घायें हैं।
7. पेंटिंग दीर्घा
8. जनजातीय (मानव शास्त्रीय) दीर्घा :-
द्वितीय तल में ही यह आठवां दीर्घा हैं जिसमें माड़िया, गोंड, बैगा, कोरकू, उरॉंव, बंजारा आदि जनजातियों के उपयोग में आने वाले कपड़े, गहने, बर्तन-भांड़े, शस्त्र, वाद्य उपकरण एवं अन्य दैनिक उपयोग की सामग्रियॉं प्रदर्शित की गई हैं। दैनिक उपयोग की वस्तुओं में माड़िया जाति की पत्तों की बरसाती, छाल का लहंगा, पानी एवं सुरा रखने की सुराही, एक पल्ले की तराजू, घास के बीजों का थैला, पत्तों की टोकनी, लकड़ी के कंघे और हेयर पिन आदि प्रदर्शन में हैं। एक शो-केस में वाद्यों, धनुष-बाण एवं चिड़िया मारने वाले गुटरू (गुलेल) को प्रदर्शित किया गया है। नृत्य की पोशाकों में अधिक पोशाक उरॉंव एवं माड़िया जनजाति की है। एक शो-केस में ककनी, हंसली, बिछिया, अंगूठी, सूता, बाजड़ी, साड़ी, चोली आदि वस्त्र प्रदर्शित किये गये हैं। किन्तु बहुत अधिक पुरावशेष एवं सामग्रियॉं होने के कारण अब पुनः संग्रहालय में स्थान का अभाव खटकने लगा है।
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